लेखनी प्रतियोगिता -15-Jul-2022चिकचिक
चिक चिक
चिक चिक हो रही रोज-रोज देखो
क्या बनाऊं सोच सोच थक गई देखो।
सुबह शाम की चिंता भारी
समझ ना आए कोई तरकारी।
बड़ों को घिया तोरी भाए।
बच्चे देखो मुंह को फुलाएं
उन्हें नहीं पता हरी सब्जी के गुण,
वह तो बस मुँह ही पिचकाए।
समस्या हर ग्रहणी की भारी
कभी-कभी ना सूझे कोई तरकारी।
बनाओ कुछ भी देखो भाई
किसी ना किसी के मन को ना भाए
मुंह फुलाए कोई हरदम,
दूजा कहे क्या मस्त तरकारी।
हलवा पूरी किसी को चाहिए
कोई मांगे सांभर डोसा जी।
चिक चिक रोज-रोज की देखो
सोच सोच कर हारी जी।
तीन टाइम सोचती मैं तो
कोई तो मेरी मदद करो
लिस्ट बना दो रोज-रोज की
चिंता मेरी खत्म करो।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
15.7.२०२२
प्रतियोगिता हेतु
नंदिता राय
16-Jul-2022 09:48 PM
बहुत खूब
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Punam verma
16-Jul-2022 03:58 PM
Nice
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Abhinav ji
16-Jul-2022 09:29 AM
Very nice👍
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